सामाजिक >> दफा 604 दफा 604अपूर्व अग्रवाल
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प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
किसी भी समाज की कोई भी इकाई समाज के नैतिक मूल्यों, मां-मर्यादाओं और अनुशासन के मानदंडो का प्रतिबिम्ब होती है ! फिर चाहे यह न्यायपीठो, न्यायाधीशों, या सत्य, न्याय और धर्म की रक्षा की प्रतिज्ञा लेनेवाले कानूनविद ही क्यों न हों, जिन्हें समाज ने लोकतंत्र का प्रमुख आधार-स्तम्भ माना हा !
प्रस्तुत कहानियां हमें इसी कानूनी दांव-पेच की जीती-जागती दुनिया में ले जाती हैं, जहाँ एक न्यायाधीश न्याय-परायणता निभाने के लिए अपने सर्वस्व की बलि दे देता है, तो दूसरा, सामाजिक बुराइयों के आगे घुटने टेक पूरे पेशे की पवित्रता भंग कर देता है ! हिंदी साहित्य की ये श्रेष्ठ कहानियां हमें उन पेचदार कानूनविदों से भी मलवाती हैं, जिनके लम्बे होशियार हाथों में कानून की लगाम है ! दफा 604 उन्हीं की कानून-पटुता की सच्चाई उकेरती कहानियों का संग्रह है, जिसमें मानव-चरित्र के कई राग-रंग आलोकित होते हैं !
प्रस्तुत कहानियां हमें इसी कानूनी दांव-पेच की जीती-जागती दुनिया में ले जाती हैं, जहाँ एक न्यायाधीश न्याय-परायणता निभाने के लिए अपने सर्वस्व की बलि दे देता है, तो दूसरा, सामाजिक बुराइयों के आगे घुटने टेक पूरे पेशे की पवित्रता भंग कर देता है ! हिंदी साहित्य की ये श्रेष्ठ कहानियां हमें उन पेचदार कानूनविदों से भी मलवाती हैं, जिनके लम्बे होशियार हाथों में कानून की लगाम है ! दफा 604 उन्हीं की कानून-पटुता की सच्चाई उकेरती कहानियों का संग्रह है, जिसमें मानव-चरित्र के कई राग-रंग आलोकित होते हैं !
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